खत्म होना लाज़मी
था
तुम्हारा खत्म होना लाज़मी था
लाज़मी था कि मुझे नहीं आते थे नए सपने
मेरी खिड़कियों के पर्दों पर
तुम्हारे ही बसंत के फूल चस्पाँ थे अब
तक
कि मैं पुराने चेहरों से कतराती थी
और नए दिलचस्प नहीं लगते थे मुझे
मुझे सुख दुख में फर्क ही नहीं लगता
था
खट्टे मीठे, रंगीन
बेरंग में भी
तुम्हारा खत्म होना लाज़मी था।
लाज़मी था कि मुझे आईने की फ़राखदिली
खलती थी अब
मुझे रुखसत के दिन का स्क्रीन सेवर
पसंद नहीं था
ज़िंदगी बेशकीमती लगने लगी थी
और तुम्हारे बहाने बड़े खोखले
मैंने जान लिया था कि लोग पुरखुलूस और
सच्चे भी हैं
तुम्हारी आँखों में सर्द बिल्लौरी
काँच देख लिए थे ।
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