मैला
‘बीबीजी राखी देओ’
बचपन में सुने शब्द
गूंजते हैं
दंड की तरह
धिक्कार की तरह
यातना और
अपशब्द की तरह
अशुद्ध मन्त्रों से
मिर्ज़ापुर और बनारस
की गलियों में माँगी जाती
थी वह राख
माँगी जाती थी पूरे
उपमहाद्वीप में
मलने को मानवता के
मुख पर कालिख
ढोने से पहले अपने
ही जैसे इंसानों का मैला माथे पर
ढकने के लिए
जाने किसकी आँखों
से
वह गन्दगी
जो हमने सदियों
उषाओं ऋचाओं मन्त्रों का अनर्थ कर करके
बैठा दी है सिंहासन
पर, पीठों और मठों में
हमारे चूल्हे बुझ
चुके हैं
हार माँ चुकी है
रसोईघरों की आग
आखिर कितनी राख
लायेंगे हम ढकने को यह वर्णभेद का मैला ?
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