Featured post

हम जन्मीं हैं रसातल में

हम जन्मीं हैं रसातल में हमने शत्रु के लिए भी सोचा हम होते इसकी जगह तो यही करते शायद ईश्वर ने नहीं सोचा  वह होता हमारी जगह तो क्या कर...

Wednesday, 21 September 2016

लैंगस्टन ह्यूज़ की कविताओं का अनुवाद

लैंगस्टन ह्यूज़ की कविताओं का अनुवाद

जेम्स मरसर लैंगस्टन ह्यूज़ (1फरवरी 1902- 22 मई 1967) सुप्रसिद्ध अश्वेत अमरीकी कवि, सामाजिक कार्यकर्ता, उपन्यासकार, नाटककार और स्तंभकार थे। वे उस समय प्रचलित कला शैली जैज़ कविता के अन्वेषक माने जाते हैं। बतौर लेखक उन्होंने अनेक प्रतिष्ठित राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय सम्मान प्राप्त किए। श्वेत एवं अश्वेत मिश्रित मूल के होने के कारण उन्हें भी अमरीका में उस समय   प्रचलित वर्णभेद समस्या का शिकार होना पड़ा। वे अश्वेत लेखकों के अधिकारों और अस्मिता के हिमायती थे लेकिन उन्होंने कभी शाब्दिक हिंसा का सहारा नहीं लिया बल्कि वे श्वेत अश्वेत दोनों वर्गों के प्रति समान भ्रातृत्व भाव रखते थे । 

एक नीग्रो की नदी-कथा
मैं जानता हूँ नदियों को
मैं जानता हूँ उन नदियों को
जो हैं पृथ्वी जितनी प्राचीन 
और मानव देह के रक्त प्रवाह से भी पुरातन
मेरी आत्मा है नदियों सी गहन 
मैंने ऊषा की तरुणाई में महानद में किया था स्नान
डाल ली थी एक झोंपड़ी कोंगों नदी के किनारे
और उसने सुलाया था मुझे लोरी गाकर
मैंने नील नदी को निरखा और उसके ऊपर पिरामिड उन्नत किए
मैं साक्षी रहा हूँ उस दिन का
जब अब्राहम लिंकन अश्वेत दासता का अंत करने न्यू औरलीन्स गए
मैंने मिसीसिपी नदी को गाते सुना था उस दिन
और सूर्यास्त की बेला
देखा था तलहटी की माटी को सुनहरा होते हुए
मैं जानता हूँ नदियों को
प्राचीन, साँवली नदियों को
मेरी आत्मा उन्हीं नदियों सी गहरी है।

मैं भी

मैं भी अमरीका का वही राष्ट्रगान गाता हूँ
जो वे
हूँ किंचित अश्वेत
उनका ही भाई
जो अतिथियों के आने पर
मुझे रसोईघर में छिपा देते हैं
तब मैं दिल खोल कर हँसता हूँ
भरपेट खाता हूँ
और बढ़ाता हूँ अपनी ताकत

क्योंकि कल
मैं भी उनके साथ खाने की उसी मेज़ पर बैठूँगा
और जब अतिथि आयेंगे
तो किसी का साहस नहीं होगा कहने का
जा रसोईघर में खा
दरअसल तब वे देख पायेंगे कि
मैं कितना सुंदर हूँ
लज्जित होंगे अपनी सोच पर
क्योंकि मैं भी अमरीका हूँ उनकी ही तरह ।

मेरे लोग

रात अनिंद्य सुंदर है
मेरे लोगों के चेहरों सी 
सितारे अप्रतिम सुंदर 
मेरे लोगों की आँखों से 
सुंदर है सूरज 
सुंदर हैं मेरे लोगों की आत्माएँ भी। 


माँ का संदेश

आज यह जान लो मेरे बच्चे! कि
जीवन मेरे लिए कभी
शीशे की सीढ़ी सा सुंदर और चमकीला नहीं रहा
नुकीली कीलें थीं
ख़ौफ़नाक ख़पच्चियाँ
फटे उखड़े तख़्ते
नहीं बिछे थे आरामदेह कालीन 
पाँवों तले थी नंगी निर्मम ज़मीन
लेकिन उस पूरे समय
यह उत्कर्ष ही था
ऊंचा चढ़ने का प्रयास
था घुप्प अंधेरे में चलने जैसा
रोशनी की एक किरण के लिए तरसने जैसा
मेरे बच्चे! हो सकता है तुम्हें कठिन लगे
लेकिन वापस मत लौटना
मत उतर जाना इन दुष्कर सीढ़ियों से नीचे
मत गिरना
क्योंकि देखो मैं अब भी चल रही हूँ
मेरे लाल! अब भी चढ़ रही हूँ शिखर की ओर
बस याद रखना, जीवन मेरे लिए भी नहीं रहा
शीशे की चमकदार सीढ़ी सा सुंदर।

 पार्क की बेंच

मैं एक पार्क की बेंच पर रहता हूँ
और तुम पार्क एवेन्यू में
देखो, ज़मीन आसमान का फ़र्क है हमारी हैसियत में
क्योंकि आज जब मैं माँग कर खा रहा हूँ
तुम्हारे पास खानसामों की फौज है
पर कहो, कहो कि तुम डर रहे हो मुझसे
तुम डर रहे हो मेरे जाग उठने से
तुम आतंकित हो
कि बस साल दो साल में
मैं पार्क एवेन्यू में
तुम्हारी जगह ले लूँगा।

अनुवाद
अनुराधा सिंह

No comments:

Post a Comment