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हम जन्मीं हैं रसातल में

हम जन्मीं हैं रसातल में हमने शत्रु के लिए भी सोचा हम होते इसकी जगह तो यही करते शायद ईश्वर ने नहीं सोचा  वह होता हमारी जगह तो क्या कर...

Thursday, 22 September 2016

निहत्थी औरतें

निहत्थी औरतें

रूस चीन जापान जर्मनी और
दुनिया के तमाम देशों में
जहाँ के पुरुष
दूर देश विजय पताका फ़हराने गए थे
दुश्मन की फ़ौजें जब घुसीं तो
उन्हें पता था कि औरतें अकेली हैं
उन्हें पता था कि औरतें कोमल हैं
उन्हें पता था कि औरतें निहत्थी हैं

मैं सोचती हूँ कि क्या कर रहीं थीं वे औरतें जब
उन्मादी पुरुषों ने भारी बूटों के साथ नगर में प्रवेश किया
क्या वे घर के बुज़ुर्गों की देखभाल कर रहीं थीं
अपने नवजात शिशुओं को सीने से लगा सुला रहीं थीं
धुले कपड़े रस्सी पर सुखा रहीं थीं
आँच से लाल हुए संतुष्ट मुख से खाना बना रहीं थीं
या दूर देश गए पति की मंगल कामना कर रहीं थी

जब
खींच निकालीं गयीं घरों से
अलग की गयीं लाचार माँ बाप
रोते हुए शिशुओं से 
जब हाँकी गयीं रेवड़ की तरह और
यातना की चरम सीमा पर मार दीं गयीं
क्योंकि इंसान जैसी नहीं दिखतीं थीं
वे निहत्थी औरतें
मैं अपने कान ढँक लेती हूँ
जब दुनिया की न जाने कितनी भाषाओं मे
एक ही चीत्कार
एक ही क्रंदन
एक ही विलाप
सुनती हूँ

मैं सोचती हूँ उस दिन के बारे में जब
उनके पुरुष
विजयी या पराजित लौटे होंगे
अपने नगर
अपने घर
और उन्होने देखे होंगे
नीले काले हुए निर्वस्त्र
बजबजाते शवों के ढेर
तो अकस्मात् याद आयी होंगी उन्हें
दूर देशों की 

निहत्थी औरतें । 

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