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हम जन्मीं हैं रसातल में

हम जन्मीं हैं रसातल में हमने शत्रु के लिए भी सोचा हम होते इसकी जगह तो यही करते शायद ईश्वर ने नहीं सोचा  वह होता हमारी जगह तो क्या कर...

Thursday, 22 September 2016

नाखुदा से मेरा वादा भी नहीं

मैंने पैर नहीं आजमाए
जहाज का तख्ता भी नहीं 
मुझे नहीं मालूम कि मस्तूल की लकड़ी कितनी मजबूत 
हवाओं का रुख किस ओर का है 
नाख़ुदा से मेरा वादा भी नहीं 
डूबने में किनारा दिखाई देता है

और पार होने का इरादा भी नहीं.  

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