उसके बिना
अब और लड़ा नहीं जाता मुझसे तुमसे
अब और गुरेज नहीं मुझे तुम्हारी बेसिर
पैर की बातों से
मैंने कल ही जाना है कि हमेशा नहीं
रहोगी मेरे साथ
सबकी माँएं मर जातीं हैं एक दिन
बेतरतीब हो गयी हैं तुम्हारी
मांसपेशियाँ
और याददाश्त
शायद हड्डियाँ घिसने से कुछ और छोटी
हो गयी हो
बाल भी कहीं हल्के कहीं थोड़े कम हल्के
हैं
साँस लेती हो
तो दूर बैठी भी सुन लेती हूँ घरघराहट
फिर भी जब जाओगी
तब मैं
रेशा रेशा बिखर जाऊँगी
तुम्हारे बिन
रात भर मैं तुम्हारे छोटे छोटे भरे
होंठों
के गीले चुंबन चिपकाती रही
अपनी हथेली से माथे और गालों पर
जो पोंछ कर रख दिये थे मैंने
झुँझला कर एक दिन हड़बड़ी में
मुझे हमेशा खला कि
तुम और माँओं जैसी नहीं थीं
साधारण और शांत
तो क्यों तुम माँ ही निकलीं
सब माँओं सी
जानती थी कि
माँ का मरना बहुत बुरा होता है
शायद दुनिया में सबसे बुरा
नहीं जानती थी
कि यह अपनी देह से बिछड़ना था
मैं कितना अधिक जानती हूँ
इस दुनिया को तुम्हारे बनिस्बत
तुम कितना कम जानती हो इन दिनों
रास्ते नहीं मालूम ज़्यादा कहीं के
कितना डरती हो हर बात से आज कल
मरने से भी
फिर भी दूसरी दुनिया की देहरी पर
तुम्हें
अकेला भेज दूँगी मैं
बिलकुल अकेला
रुग्ण दुर्बल और भ्रांत ।
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