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हम जन्मीं हैं रसातल में

हम जन्मीं हैं रसातल में हमने शत्रु के लिए भी सोचा हम होते इसकी जगह तो यही करते शायद ईश्वर ने नहीं सोचा  वह होता हमारी जगह तो क्या कर...

Thursday, 22 September 2016

समिधा

हम उस यज्ञ की समिधा बनना चाहते हैं......जिसके पुरोहित.....इतिहास में पहली बार.....हमारे पुरखे नहीं हैं। यह क्रांति है सामाजिक न्याय नहीं .....हमारे घुटने और पुट्ठे छिलेंगे स्थिति परिवर्तन में..... तो हम कराहेंगे ....चीखेंगे नहीं (हमें कराह लेने देना). हम देखेंगे......... किंचित अन्याय होते भी तो ....सह लेंगे. कम से कम हमारे ...नहाये धोये ....वर्दी पहने......उत्कंठा से उमगते बच्चों से ...तुमने चपरासी और जमादार का काम नहीं लिया.....नहीं धकियाया उन्हें कक्षा से बाहर .......नहीं बैठाया उन्हें .......ठंडी निर्दयी ज़मीन और मानवता की सीमारेखा  पर.....तुम्हारा अग्रिम आभार.

पुनश्च : तुम्हारे छाले टीसते हैं मेरे तलवों और दिल में. 

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